सबकी नजर, छत्तीस के आंकड़े पर
पौड़ीः यूं तो छत्तीस के आंकड़े का संबोधन अक्सर तब होता है जब आपसी कड़वाहट हदों के इर्द गिर्द घूमती है। सामाजिक सौहार्द के लिहाज से इस आंकड़े अनुकूल नहीं माना जाता। लेकिन उत्तराखंड की सत्ता हासिल करनी है तो राजनैतिक दलों को छत्तीस का आंकड़े पर फोकस करना होगा। इन दिनों हो भी वही रहा है। कड़वाहट की हदों वाला यह आंकड़ा हरेक की जुबान पर चढ़ सर्वप्रिय बना हुआ है। यानी हर हाल में इस नामुराद आंकड़े के लिए पूजा, प्रार्थनाएं तक कर रहा है।
प्रदेश की सत्तर विधान सभाओं के लिए 14 फरवरी को वोट डाले गए। फिलहाल सत्ता भाजपा के हाथों में है। भाजपा प्रदेश में रिपीट होने का सपना पाले है तो कांग्रेस एक बार तुम एक बार हम के फार्मूले से उम्मीद गांठ रही है। सत्ता पर काबिज होने के लिए कुल जमा देखा जाए तो 36 के जादुई आंकड़े की अनिवार्यता सभी को परेशान किए है। बाहर बाहर मीडिया या अन्य तौर पर अपने बयानों में कहीं 50 पार की बात हो रही तो कहीं 60 पार की। लेकिन सबसे अधिक जो चिंता है वह 36 के आंकड़े की है। क्योंकि इस आंकड़े के बाद के आंकड़े तो उतने मायने नहीं रखते जितना 36 रखता है।
हर बार की तरह राजनैतिक विश्लेषक, मीडिया मुगल, मीडिया घराने और राजनैतिक वाचाली करने वाले इस बार भी गुणा भाग कर नतीजे कभी किसी के तो कभी किसी के पक्ष में बता रहे हैं। चुनाव के दौरान वोटिंग से पहले जनता का मूड जानने के लिए मीडिया घरानों के तमाशे तो अब वोटर का मजाक उड़ाने से ज्यादा कुछ नहीं रहे। सोशल मीडिया के दौर में आई एंकरों की बाढ़ में पत्रकार कम और जोकर अधिक नजर आते हैं।
बहरहाल, आने वाली 10 मार्च को नतीजा चाहे जिसके भी पक्ष में आए, लेकिन ज्यादातर विश्लेषणों में भाजपा ही 36 के आंकड़े को पहले पार करती दिखाई दे रही है, या यूं कहें कि नजदीक बताई जा रही है। वहीं कांग्रेस के चुनावी मुखिया हरदा तो स्वयं को सीएम मानकर विकास की प्लानिंग तक करने लगे हैं। भाजपा के नेताओं के सत्ता हाथ निकलने की पत्र भी खूब वायरल हो रहे हैं। सत्ता हथियाने के लिए भाजपा कांग्रेस के अपने अपने दावे हैं। लेकिन बड़ी बड़ी बाते कर सपनों की इस उड़ान में जाहिर तौर पर उनके अंतर्मन उसी आंकड़े की प्रार्थना कर रहे होंगे जिसे समाजिक सौहार्द के लिए अनुकूल नहीं माना जाता।