चौथे साल में 3 सीएम बदलने वाली भाजपा लगातार सर्वे में खो रही बढ़त,
देहरादून। लगभग 4 साल तक भाजपा की जीरो टॉलरेंस की नीति को आगे बढ़ाने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलने का फैसला क्या अब भाजपा को ही भारी पड़ने लगा है। क्या आखिरी साल में 3 सीएम बदलने का रिस्क लेने वाली भाजपा की रणनीति फेल हो गई। ये वो तमाम सवाल हैं जो सियासी माहौल में इन दिनों खूब चर्चाएं बटोर रहे हैं।
जी हां, जिस तरह से भाजपा ने प्रदेश में त्रिवेंद्र के सीएम रहते हुए कांग्रेस पर बढ़त बनाई हुई थी उसे अब भाजपा पूरी तरह से खोती नजर आ रही है। स्थानीय स्तर पर भरोसेमंद चौनल के पिछले एक साल के समय समय पर आए सर्वे के नतीजे तो यही इशारा कर रहे हैं कि उत्त्तराखण्ड में भाजपा की पकड़ ढीली पड़ रही है और कांग्रेस लगातार नच हो रही है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत 18 मार्च 2021 को अपनी सरकार के 4 साल पूरे करने जा रहे थे लेकिन उससे चंद दिन पहले ही गैरसैंण में ऐतिहासिक कदम उठाने के बाद सदन को संबोधित कर रहे त्रिवेंद्र की अभिमन्यु की तरह तब ऐसी घेराबंदी की गई कि उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। गैरसैंण से लेकर देवस्थानम बोर्ड आदि त्रिवेंद्र के वो फैसले थे जो माइलस्टोन समान थे।
खैर, त्रिवेंद्र के जाने के बाद तीरथ सत्तासीन हुए लेकिन अपने लंपट बयानों से तीरथ ने भाजपा की सियासी हालत इतनी खराब हो गयी कि वे 3 महीने भी पूरे नहीं कर पाए। तीरथ के रहते ये बस्ते खूब हुई कि इनसे हर दृष्टि से त्रिवेंद्र बेहतर थे।
इनके बाद सूबे में फिर भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन किया और सारे धुरंधरों के अरमानों पर पानी फेरते हुए पुष्कर सिंह धामी सीएम पद तक पहुँचे। जो विधायक कभी मंत्री भी नहीं बना था उसके सीधा सीएम बनने से कई कद्दावर नेताओं की तो कई रातों तक नींद ही उड़ी रही।
पुष्कर ने शुरुआत भी सधी हुई की। अपने व्यवहार के कारण वे जल्दी ही प्रदेशभर में बेहद लोकप्रिय हो गए। समय कम होने के बावजूद उन्होंने कुछ फैसले सियासी नफा नुकसान भांपकर लिए और भाजपा के ग्राफ को ऊपर की ओर ले जाते दिखे लेकिन लास्ट के ओवर्स में धामी भी बड़े शॉट खेलने के चक्कर में कुछ गलतियां अनजाने में कर गए। पहले उनके एक चतव खनन के वाहनों को छुड़ाने को लेकर चर्चा में आये तो बाद बाद में आचार सहिंता के करीब किये गए तबादले और बैक डोर में हुए तबादलों आदि ने उनकी स्थिति को भी डांवाडोल कर दिया। उनके बेहद करीब कैबिनेट मंत्री के एक सिफारिशी पत्र ने भी खूब सुर्खियां बटोरी। आचार सहिंता तक पहुँचते पहुँचते अपने चतव की बहाली का आदेश भी निकाल गए।
बहरहाल, जो बढ़त धामी ने बनाई थी उन्हें कहीं न कहीं अंतिम क्षणों में गंवाया है। अब चौनल का आज का ताजा सर्वे भी यही इशारा कर रहा है कि सूबे में जो भाजपा कभी बवउवितजंइसम विक्ट्री की ओर थी वो आज संघर्ष की स्थिति में है। हरीश रावत को हल्के में लेने की भाजपा की गलती उसे आने वाले दिनों में पानी भी पिला सकती है। चंद विधायकों और खुद दो दो सीट से हारने के बावजूद जिस तरह हरदा ने कांग्रेस को मजबूत स्थिति में लाया उससे भाजपा नेताओं को सीख लेने की जरूरत है। 5 सालों तक कांग्रेसी गोत्र के नेताओं को ढोना और अंत के एक साल में उनके नखरों, ब्लैकमेलिंग के आगे समर्पण कर देना अब भाजपा को भारी पड़ता दिख रहा है।