सदानि जौं
घौर-बोण
औंद-जांद दौं
रिक्ख,बाघ, कुमन्खी /दोबणा होन
सर्रा दिनमान
अपड़ा भटुड़़ा तुड़ै़ कि बि
ब्यखुनदौं
जौंकि मार-कुटै हि/होणी रौण
सैंती – समाळी
घौर बिटि बि
जु बग्त – कुबग्त
भैर/धिकायेणी होन
सेंद-खाँद
गाळि-मगाळी सूणी
जौंकि सर्रा गत
झर्र-झर्र/झुरणी होन
वूं माँ-बैण्यूं की
खौरी
आखिर कब ?
अर कनक्वे/कम होण?
तौं का नौ
सदानी तरौं
आज हमुन
एकी दिनै संगराँद/बजौण
साहित्यकार, आदरणीय नरेंद्र कठैत जी की वॉल से।