सत्ता के लग्जीरियस चश्मे से आम जन की तकलीफें कम दिखाई पड़ती हैं, या दिखाई ही नहीं पड़ती। और वैसे भी कमजोर को पूछता कौन है। कदाचित, उनके चश्मे की रेंज से दूर वो प्रश्न किसी के लिए बड़ी चुनौती या यूं कहें कि जानलेवा हो जाती रही हैं।
कहते है हर युग को अपने बदलाव का इंतजार रहता है, समय बदला और मजबूरों की मजबूरी दूर करने का भी इंतजार हो गया। जी हां……
प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमान जब से डा धन सिंह रावत ने संभाली है और सरकार दृढ़ हुई, तब से कई तमाम ऐसी दिक्कतें हल हो गई हैं जिन्हें लग्जीरियस चश्मे से अक्सर हल्के में लिया जाता रहा है। लेकिन सच है कि समाज के बड़े तबके पर उसका प्रभाव बहुत आघाती होता रहा।
अब देखिए ना, आज सूबे में आयुष्मान योजना का लाभ हर अस्वस्थ जरूरतमंद को मिल रहा है। इस पर कोई लाख टीका कर ले, कोई फर्क नहीं पड़ता। खुशियों की सवारी से लेकर डंडी पीनस तक के इंतजाम धनदा के राज में हुए हैं। यहां तक कि डंडी पीनस उठाने वालों को भी मेहनताने का प्रावधान हुआ है। ये वो इंतजाम हैं जो सुनने और कहने में कतई दोयम से हैं, लेकिन इनकी अहमियत उनसे जाकर पूछिए जिनके लिए यह बहुत बड़ी समस्या का हल है।
शायर मुन्नवर राणा के शब्द हैं किः-
किसी दिन प्यास के बारे में उससे पूछिए जिसकी
कुअें में बाल्टी रहती है अर रस्सी टूट जाती है।
खैर…. आगे बढ़ते हैं।
रोकथाम के तमाम प्रयासों के बाद भी हमारे पर्वतीय प्रदेश में हादसों की खौफनाक तस्वीरें सदा से ही वचलित करती आई हैं। घायलों के उपचार की महाभारत में कहीं कागजों की रेलम पेल रोड़ा बनती है तो ज्यादातर मामलों में आर्थिक तंगहाली जिंदगी पर भारी पड़ जाती है। क्या बीतती होगी उस परिवार पर जो हादसे के बाद मौत से जूझते परिजन के लिए तत्काल जिंदगी बचाने के इंतजाम नहीं जुटा पाते होंगे।
सच में ऐसे मौके पर पैसे का इंतजाम न हो पाना कई लोगों को जीते जी मार डालता होगा।
लेकिन उस नीली छतरी वाले के शुभाषीश से अब धन दा के राज में आम जनमानस या यूं कहें मजबूर बेवशो की यह दिक्कत भी छू मंतर हो जाएगी।
जनहितों की जमीनी सोच पर अमली जामा पहनाते हुए केंद्र की ओर से हुए इंतजामों में प्रदेश के राजमार्गो पर हुए हादसे के घायल व्यक्ति के उपचार के लिए तत्काल 1.5 लाख तक के कैसलेश उपचार की सुविधा मिलेगी। उसके पास चाहे आयुष्मान या किसी तरह का अन्य स्वास्थ्य कार्ड हो या ना हो, उसे हर हाल में कैसलेस उपचार मिलेगा। वह कौन है, कहां का है, कौन लाया, साथ में कौन है, परिजन कौन हैं, कब आएंगे, कोई पूछताछ नहीं। सीधे उपचार शुरू। निश्चित ही ऐसे में उस तरह की कई जिंदगियां बच जाएंगी जिन्हें वक्त ना रहते हुए भी किसी कागज का, किसी अपने का, किसी सिफारिश का, किसी कार्ड का, डाउन सर्वर चालू होने का इंतजार करना भारी पड़ता रहा। वाह…..ये हुई ना बात!
धरा के शून्य पर उम्मीदों का बोझ उठाए खड़े कमजोर व्यक्ति का ध्यान रखने वाली जो सोच है,
कलम आज उनकी जय बोल!