जानिए अधीनस्थ सेवा चयन आयोग भर्ती घपले की कब हुई शुरुआत, कब कब कैसे बचे दोषी, किस सरकार में आकर ध्वस्त हुआ भर्ती माफियाओं का साम्राज्य, किस सीएम ने जेल की सलाखों के पीछे भेजने का दिखाया साहस
देहरादून। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन 17 सितंबर 2014 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार में हुआ। 2016 में जाकर इस आयोग ने तीन परीक्षाएं कराईं। तीनों ही विवादित रहीं। आयोग ने अपने गठन के बाद वर्ष 2015 में ही 16 एजेंसियों में से विवादित आरएमएस टेक्नो सॉल्यूशन का चयन किया।
इसके बाद आयोग ने सबसे पहले असिस्टेंट एकाउंटेंट ट्रेजरी के पदों पर भर्ती कराई। इस भर्ती में हुए चयन पर तत्कालीन सदस्य दीवान सिंह भैंसोडा ने ही सवाल उठाए। इस परीक्षा में उस समय के आयोग से जुड़े बेहद ताकतवर अफसर के सगे भतीजे का भी चयन हुआ। इसके बाद दूसरी परीक्षा कम्प्यूटर सहायक के पद की हुई, लेकिन इसका नतीजा 2016 में ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के 196 पदों के लिए कराई गई भर्ती के परिणाम के बाद आया। कम्प्यूटर सहायक समेत ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के परिणाम जारी हुए।
इन दोनों ही परीक्षाओं के नतीजे विवादों में रहे। ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के पदों पर तो एक ही परिवार के पांच पांच सदस्य चयनित हुए। गजब ये रहा कि एक ही परिवार के सदस्यों ने अलग अलग जिलों से परीक्षा दी। इस गड़बड़ी की सरकार ने तत्कालीन अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह की अध्यक्षता में जांच कराई। जांच में भी परीक्षा में गड़बड़ी, टेंपरिंग की पुष्टि की गई। केस तक दर्ज हुआ, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी दौरान यदि सख्त कार्रवाई हो जाती, तो आज ये बड़ा विवाद न खड़ा होता।
इस गड़बड़ी के बाद तत्कालीन अध्यक्ष आरबीएस रावत ने इस्तीफा दिया। जो छह महीने तक स्वीकार नहीं हुआ। इस दौरान वे लगातार भर्ती प्रक्रिया से जुड़े रहे। गड़बड़ी पाए जाने के बावजूद आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। लगातार धांधली चलती रही। इस मामले में सवाल ये है कि क्यों अध्यक्ष का इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ। जब उन्होंने इस्तीफा दे दिया, तो क्यों वे लगातार भर्ती प्रक्रिया से जुड़े रहे।
इसके बाद सचिवालय रक्षक पद की भर्ती के पेपर आयोग ने अपनी प्रेस से छपवाए। इसके बाद भी वे आयोग के दफ्तर से लीक हुए। दागी आरएमएस कंपनी के साथ करार 2018 में समाप्त होने के बाद भी लगातार उससे काम लिया जाता रहा। क्यों किसी ने तमाम आरोपों के बाद कोई कार्रवाई नहीं की। क्यों पूरे समय रुड़की में सरकारी प्रेस होने के बावजूद क्यों प्राइवेट प्रेस से पेपर छपवाए गए। इसी दागी एजेंसी को क्यों और किस आधार पर पंतनगर विवि और मेडिकल यूनिवर्सिटी की परीक्षा का जिम्मा दिया गया।
2016 से शुरू हुआ घपला, 2022 में सीएम धामी की सख्ती के बाद जाकर हुआ बंद
अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में भर्ती घपला 2016 में शुरू हुआ, जो लंबे समय तक जारी रहा। तमाम सरकारें आईं और गई, लेकिन किसी ने भी इस भर्ती सिंडिकेट पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं उठाई। 2022 में जाकर इन भर्ती माफियाओं पर सीएम पुष्कर धामी ने प्रचंड प्रहार कर उन्हें नेस्तनाबूद करने का साहस दिखाया। एक के बाद एक आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा। उत्तराखंड से लेकर यूपी तक फैले नकल माफियाओं के नेटवर्क को पूरी तरह तहस नहस कर दिखाया। राज्य के युवाओं में भरोसा जगाया। पारदर्शी भर्ती सुनिश्चित कराने को लोक सेवा आयोग को भर्ती का जिम्मा सौंपा।
2020 में बच निकला था हाकम
वीपीडीओ भर्ती में गड़बड़ी को लेकर 2020 में मंगलौर थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी। आलोक नाम के शख्स ने एफआईआर कराई। हाकम सिंह, मुकेश सैनी, कुलदीप राठी, गुरुबचन, पंकज समेत कई आरोपी बने। लेकिन इनमें से किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। न ही पुलिस ने कोई एफआर लगाई गई। उसी दौरान यदि इस सिंडिकेट को दबोच लिया गया होता, तो राज्य के युवाओं के साथ इस तरह कोई छलावा नहीं होता।