हालांकि यह कांग्रेस का अंदरूनी मामला है,परंतु किसी घर में जब बर्तनों की जोर-जोर से बजने की आवाज आती है तो कलह की आशंका में अच्छे पडो़सी का मन खराब हो जाता है। एक छोटे से राज्य में चार प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भले ही पार्टी ने कई खापों और खेमों के मुंह पर पट्टी बांध दी हो,लेकिन इसका एक संदेश यह भी गया है कि अंदर बहुत सी ताकतें अपना वर्चस्व दिखाने को आतुर हैं।
कांग्रेस के चार कार्यकारी अध्यक्ष एक प्रकार से बिना पट्टी के पटवारी और बिना स्कूल के प्रिंसिपल होंगे। नौ कुली और दस ठेकेदार की उक्ति को चरितार्थ करते पार्टी के निर्णय से साफ झलकता है कि हरीश रावत के चहेते गणेश गोदियाल को मुखिया तो बनाया गया है,लेकिन अन्य को भी नाराज नहीं किया गया है। आज तक संतुलन का जो खेल मुख्यमंत्री,प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के चयन में खेला जाता था,वह अब कार्यकारी अध्यक्ष बनाने में भी खेला गया है। ब्राह्मण,ठाकुर…..गढ़वाल,कुमाऊँ की जाति और क्षेत्र की राजनीति के तहत लिए गए इस निर्णय से सत्ता का विकेंद्रीकरण भी किया गया है।
रणजीत रावत को यह पद इसलिए दिया गया कि वे हरीश रावत के ‘शत्रु’ बन चुके हैं। हालांकि हरीश के मुख्यमंत्री रहते रणजीत अप्रत्यक्ष मुख्यमंत्री थे,लेकिन बताया जाता है कि दांत काटी रोटी खाने वाले किसी मसले पर इनकी दूरियाँ चबाए हुए चिविंगम की लपांद की तरह बढ़ती गयीं तो बढ़ती गयीं। रणजीत रावत हालांकि पॉलिटिकल नहीं,बिजनेस माइंड नेता हैं,लेकिन ठाकुरी ठसक के मामले में हरीश से सवा सेर आगे हैं। प्रो.जीतराम को दूसरा कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। जीतराम जी में एक सच्चे अध्यापक के गुण हैं। वे चालबाज,घपलेबाज तो नहीं हैं,पर बहुत हद तक मासूम हैं,जो राजनीति का खरपतवार है। वे जोर से बोलने पर दुणौज की दुलहन की तरह हिचकते हैं। एक बार मैं एक ज्वलंत मसले पर तत्कालीन राज्यमंत्री उच्च शिक्षा प्रो.जीतराम जी के साथ सचिवालय में उच्च शिक्षा सचिव से मिलने गए। हम दोनों को सचिव के कमरे के बाहर गार्ड ने रोक दिया। इस पय जीतराम जी को अपना परिचय देना पडा़-“मैं जीतराम विधायक थराली”।
खैर,कुल मिलाकर बात यह है कि कांग्रेस ने चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर यह जतलाने का भी प्रयास किया है कि यहाँ कोई सोनिया गांधी की तरह सुपर पावर बनने का प्रयास न करे। जंगली जानवरों से फसल की रक्षा के लिए खडे़ किए गए इन पुतलों का लाभ कांग्रेस को कितना मिल पाएगा,यह देखने वाली बात होगी।
-डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल,देहरादून, की वॉल से साभार