श्रीनगर विधानसभाः औंधे मुहं गिरे चौराहों के चाणक्य
प्रदेश विधान सभा चुनावों में कुल जमा 70 में से 47 सीटांे पर फतह के साथ भाजपा ने सरकार बना ली है। और सरकार भी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ने लगी है। जश्न का उत्साह सातवें आसमान से साामान्य उंचाई पर आ गया है और हार के जख्म ना चाहते हुए भी वक्त के साथ भर ही जाएंगे। लेकिन श्रीनगर विधान सभा में डा धन सिंह रावत की जीत पर विचलित हुए चालाक लोगों की कायनात और चौराहे के चाणक्यों की बेचैनी उन्हें भीतर ही भीतर जला रही है। वजह के लिए तह तक जाना पड़ेगा, लेकिन तह तक का सफर वक्त मांगता है। यानी उस वजह के लिए इंतजार करना होगा।
यहां बता दें कि पिछले कार्यकाल में राज्य व कैबिनेट मंत्री रहते हुए डा धन सिंह रावत ने प्राप्त जिम्मेदारियों को जिस सक्रियता से उन्हें सफलता की उचाइंयों पर पहुंचाया उसने आम जन के दिलों में तो उनकी छवि एक नायक की बनी। लेकिन यही सक्रियता मशीनरी से लेकर चौराहे के चाणक्यों तक को तब से ही खटक रही थी। छवि को धूमिल करने के लिए कदाचित परपंच और षडयंत्रों के कुचक्र भी बुने गए। लेकिन सब मिट्टी हो गया।
प्रदेश की राजधानी से लेकर अधिकांश क्षेत्रों में वो लोग तक डा धन सिंह रावत की पराजय की बात कर रहे थे जिन्होंने श्रीनगर विधान सभा को दूर से भी शायद ही देखा हो। कहने की जरूरत नहीं कि कि कौन, लेकिन वो चालाक लोग एक परशप्सन तैयार कर रहे थे। ताकि राजनीति में एक जानकार, तेज तर्रार, सक्रिय व काबिल नेता धनदा को वहीं रोका जा सके।
अब धीरे धीरे बातें छन कर आ रही हैं तो साफ हो रहा है कि देहरादून समेत अन्य क्षेत्रों में धनदा की पराजय पर सट्टे तक भी खूब लगे। लेकिन कहते हैं ना, जनता जनार्द्धन होती है, वह जिसे चाहेगी विजेता बनाएगी। कुछ लोगों द्वारा खाली पीली परशप्सन तैयार लेने से कुछ नहीं होता। हो सकता है कहीं होता हो, लेकिन श्रीनगर विधान सभा क्षेत्र की जनता यह बता दिया है कि धनदा जैसे जमीनी नेता को सिर्फ खोखले परपंचों से शिकस्त देना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
सच तो यह है कि जनता की ताकत के आगे औंधे मुहं गिरी चालाक लोगों की पूरी कायनात के साथ ही चौराहे के चाणक्य भी अब मुहं छिपाते फिर रहे हैं। फिर भी कुछ जीत को मामूली बता रहे हैं। तो कुछ ने पाला बदल कर दिया है और कुछ तैयारी में हैं।