जिलाधिकारी डॉ0 आशीष चौहान ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 जिलाधिकारी डॉ0 आशीष चौहान ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 ( उ०प्र० ज०वि० एवं भू०रा०अधि० ) की धारा 154 के तहत भूमि क्रय करने के अनुमति निर्गत होने के उपरान्त भूमि को प्रस्तावित प्रयोजन हेतु उपयोग में न लाने के कारण सम्बन्धित के विरुद्ध धारा 167 के तहत कार्यवाही के निर्देश उप जिलाधिकारियों को दिए हैं। जिलाधिकारी ने निर्देश दिए कि शासन/जिला स्तर से प्रदत्त स्वीकृति के क्रम में स्थल निरीक्षण कर, जिन आवेदकों/ क्रेताओं द्वारा शर्तों का उल्लंघन किया गया है, के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही हेतु प्रत्येक के सम्बन्ध में पृथक-पृथक एवं स्पष्ट आख्या संस्तुति सहित एक सप्ताह अन्दर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें।
उप जिलाधिकारियों के भेजे गये पत्र में जिलाधिकारी डॉ0 आशीष चौहान ने कहा कि तहसीलों द्वारा उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) (अनुकूलन एवं उपान्तरण आदेश, 2001) (संशोधन) अधिनियम, 2017 की धारा 154 के अन्तर्गत शासन एवं जनपद स्तर से भूमि क्रय की अनुमति प्रदान की गयी है। तहसीलों से प्राप्त सूचना के अनुसार कतिपय आवेदकों/क्रेताओं द्वारा भूमि क्रय करने की अनुमति हेतु निर्गत आदेश के क्रम में आतिथि तक भूमि क्रय नहीं की गयी है एवं कतिपय आवेदकों द्वारा प्रस्तावित प्रयोजन हेतु भूमि का उपयोग नहीं किया गया है। उत्तरांचल/उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1952, प्रथम संशोधन नियमावली 2004 के नियम 116 (ट-3) में प्राविधान है कि जिले के कलेक्टर/शासन द्वारा भूमि क्रय करने की अनुमति हेतु पारित ऐसा आदेश, आदेश की तिथि से 180 दिन तक वैध रहेगा। समयावधि 180 दिन समाप्त होने के पश्चात् अनुमति स्वतः प्रभावहीन/निष्प्रभावी हो जायेगी।
उ०प्र०ज०वि०एवं भू०व्य०अधि० 1950 में स्पष्ट है कि गैर काश्तकार जिसने सरकार या कलेक्टर, यथास्थिति की स्वीकृति के अधीन धारा-154 के अधीन भूमि का ऐसा प्रयोग करेगा, जिसके लिये स्वीकृति दो वर्ष की अवधि या ऐसी अग्रेत्तर अवधि के भीतर, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से प्रदान की गयी है, जिसकी गणना विलेख के रजिस्ट्रीकरण की तारीख से की गयी है और यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है या भूमि के प्रयोग को परिवर्तित करता है, जिसके लिए स्वीकृति प्रदान की गयी थी या उस प्रयोजन के सिवाय जिसके लिए वह क्रय की गयी थी, विक्रय, दान या अन्यथा द्वारा भूमि का अन्तरण करता है, तो ऐसा अन्तरण इस अधिनियम के प्रयोजन के लिये शून्य होगा और धारा 167 का परिणाम उत्पन्न होगा। इस संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय में उपजिलाधिकारियों को आवेदकों/क्रेताओं की सूची प्रेषित करते हुए कार्यवाही करने के निर्देश दिए है।