कहा जाता है कि दूसरे का दुख लोगों के लिए किसी चलचित्र की तरह होता है। देखकर सहानुभूति हर कोई जताता है लेकिन बेवशी अपनी जगह रहती है। लेकिन आज ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में श्रीनगर क्षेत्र के विधायक और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जब अपने लोगों को मिलने पहूंचे तो उस मुलाकात में एक भरोसा जगा, जिंदगी जीने का भरोसा, जिंदगी में फिर से लौटने का भरोसा, स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी का भरोसा। वह भरोसा जो सच में भरोसा होता है, सच में उस भरोसे को बयां करने में ब्रह्म रूपी शब्द भी छोटे पड़ जाते हैं।
अस्पताल के बिस्तर पर लाचार पड़े घायल की बेवशी को कोई उस स्तर तक नहीं समझ सकता जिस तक वह लाचारी होती है। लेकिन जब कोई प्रभावशाली कंधे पर हाथ रखकर कहता है कि चिंता मत कर मैं हूं ना, तो उम्मीद का उफान उठना लाजमी है।
मंत्री जब अस्पताल पहुंचे तो उनके साथ एक उर्जा स्वतस्पूर्त संचारित हुई। मंत्री ने ठेठ ग्रामीण बोली में जब बातचीत की तो घायलों के साथ-साथ तीमारदारों के चेहरों का तनाव उस सकारात्मक माहौल में वाकई न्यून पर आ गया। कारण यह था कि उनके लिए यह दर्द चलचित्र नहीं बल्कि वह साथ में पूरे सिस्टम को निर्देश भी जारी कर रहे थे। अपनत्व और प्रभाव के संगम ने अस्पताल के दर्द और तनाव वाले वातावरण को एक भरोसे और आत्मविश्वास से भर दिया।
बाहर से देखने वाले इस लाचारी पर वार करते भरोसे को भी चलचित्र ही मानेंगे, लेकिन जिंदगी के लिए अस्पताल के बिस्तर पर जंग कर रहे घायलों और निशादिवस तनाव सेेेेेेे जूझ रहे उनके परिजनों के चहरे पर साफ झलकते भरोसे के भाव वाकई एक उम्मीद और ताकत की कहानी गढ़ रहे हैं। शायद यही आत्मीयता है जो धनदा को लोकप्रिय और सच्चा जन नेता बनाती है।