जमीनी जुड़ाव ही होती है एक जननेता की असली ताकत
राजकीय प्राथमिक विद्यालय नौगांव। यही उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत के अपने गांव का स्कूल है। गत दिवस क्षेत्र भ्रमण के दौरान शिक्षा मंत्री पहले इसी स्कूल में गए। और फिर शुरू हुई गांव की मिठास, अपनापन, खेत खलियानों की रंगत, बड़े बजुर्गों की ओर से मिलने वाले शुभाषीशोे का अनमोल और कभी ना खत्म होने वाला सिलसिला।
बुलंदियों के किस्से जब भी रचे गए, तमाम उचांइयों के बाद भी उस मिट्टी का जिक्र जरूर होता है जहां वह सोच जन्म लेती है। डा रावत जैसे ही स्कूल में पहुंचे तो गेट के सामने स्कूली यूनीफार्म में खड़े कई छात्र छात्राओं ने बोडा प्रणाम, दाजी प्रणाम के संबोधन से उनका स्वागत किया। वह क्षण बहुत गदगद करने वाले थे। और मंत्री ने भी उन्हें उसी आत्मीय भाव से दुलारा कि अच्छी तालीम के लिए स्कूल पहुंच रही नौगांव न्याणगढ़ की नई पीढ़ी पूरे उत्साह के साथ खिलखिला उठी। फिर मंत्री बोले सब नीचे सड़क में चलो और मेरी गाड़ी में बैठो।
यहीं स्कूल के किनारे कुछ उम्रदराज महिलाएं खड़ी हैं, मंत्री ने उन्हें सिर झुकाकर प्रणाम किया तो वह सभी जुगराज रौ मेरा, कहते हुए आशीष देती हैं। उन सभी उम्रदराज महिलाओं को भी गाड़ी में बैठाने के लिए धनदा ने अपने स्टाफ को कहा। स्कूल से कुछ दूर नौगांव गांव के बीच में पंचायत भवन है, वहां स्वास्थ्य शिविर है। बुजुर्ग महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के निस्तारण के लिए वहां डाक्टर पहुंचे हैं।
स्कूल के उपर एक घर है वहां से एक महिला धनदा को आवाज लगाती है आवा बाबा चा बणौला। यही तो मिठास है अपने गांव के अपनेपन की। वहां सब कुछ पूरी तरह से निश्छल और बिंदास।
गांव की मिट्टी ही है जो सफलता के सिरमौरों को विजेता बनने का हौसला देती है। और धनदा भी उसी विनम्रता से ग्रामीणों का अभिवादन स्वीकारते हैं। गांवों में नशाखोरी आज के समय बड़ी चिंता का विषय है। यहां मंत्री ने नशा उन्मूलन के लिए सख्त कदम उठाने की बात कही तो मौजूदा हालातों से निराश मातृशक्ति में आस जगी है कि उनके नेता और नेता से बढ़कर उनके लाडले के इस कदम से गांवों से लेकर शहरों तक कई घर बर्बाद होने से बच जाएंगे।
नौगावं न्याणगढ़ और आसपास के गांवों के लोग पंचायत भवन में एकत्र हैं। कार्यक्रम में बात शिक्षा, सड़क पेयजल, स्वास्थ्य, के अलावा खेतीबाड़ी, बंदर भालू, रोजी रोजगार, फल पट्टी समेत तमाम तरह के विकास पर हुई। बेहतरी के लिए ग्रामीणों ने हर बात का व्यवहारिक पक्ष बताते हुए खुलकर अपने सुझाव भी रखे। यहां मंत्री ने अपनी विकास योजनाओं की प्रगति और नई योजनाओं के बारे में भी विस्तार से बताया।
शिविर में कई लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया, निशुल्क दवा वितरण हुआ। दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाए गए। गांव में शिविर करने आए चिकित्सकों व स्टाफ को मंत्री ने स्वयं भोजन परोसा। इससे अधिकारियों में हिचक हुई तो उन्होंने कहा कि यह मेरा गांव है। मुझे अच्छा लगता है।
यहां ग्रामीणों ने बताया कि कार्यक्रम में गांव के युवा भी पूरे उत्साह के साथ जिसे जो जिम्मेदारी मिली है उसे निभाने लगा है। कहा कि धन सिंह भाई का गांव के प्रति जिस तरह का लगाव है वह किसी मुकाम पर पहुचंने के बाद कम ही लोगों में देखने को मिलता है। वह जब गांव या क्षेत्र में आते हैं, और एक दूसरे से बतियाते हैं तो हर कोई उनमें खुद को तलाश करता है। और आमजन की यही तलाश एक लोकप्रिय जन नेता और ताकतवर व्यक्तित्व की सबसे बड़ी ताकत होती है। यहां के लिए वह एक प्रेरणा हैं।
कार्यक्रम के बाद कुछ देर वह अपने घर में रहे, परिजनों के अलावा आसपास के घरों में बतियाना, छोटे बड़ों का हालचाल पूछना, रिस्ते में छोटी बहनों या बहुओं का उनके पावं छूना, यानी सबकुछ पूरी तरह से सामान्य जीवन की तरह। सच में इस तरह का जुड़ाव उन्हें अन्य नेताओं से कई उपर और पृथक करता है।
घर के पड़ोस में बुजुर्ग ताई जी के पास हालचाल पूछने गए। बुजुर्ग ताई जी की आंखों की रोशनी थोड़ा कम हुई है लेकिन सुनाई ठीक से जाता है। वहां आस पास बैठी मातृशक्ति भी ताई जी की उम्र नहीं जानती। मंत्री बोले कत्या उमर ह्वे होली, तो वहां बैठी एक महिला बोली, तुम्हरी मां का बराबर होली, इस पर बुजुर्ग बोली तेरी मां मेरी द्यूराण चा। यानी तुम्हारी मां मुझसे से छोटी है। इस वार्तालाप में अनमोल रिस्तों के तारतम्य के आगे शब्द सिमट से रहे हैं।
लौटते हुए महिलाएं, बच्चे अपने घरों की छतों में हैं वह छतों से ही बतिया रहे हैं। तो ग्रामीण गांव के संकरे रास्ते में कतारबद्ध होकर उन्हें सड़क तक छोड़ने साथ आ रहे हैं।