कैबिनेट द्वारा लिये गये महत्वपूर्ण निर्णय
1- उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति (प्रोक्योरमैन्ट) नियमावली, 2024 के प्रख्यापन के संबंध में निर्णय।
वित्त विभाग, उत्तराखण्ड शासन की अधिसूचना दिनांक 14 जुलाई, 2017 के द्वारा राज्य में अवस्थापना एवं सेवा परियोजनाओं के लिए सामग्री, निर्माण कार्य, सेवाओं की अधिप्राप्ति और लोक निजी सहभागिता की व्यवस्था करने के प्रयोजन और उनसे सम्बन्धित या अनुषांगिक विषयों के विनियमन के लिए उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति नियमावली, 2017 प्रख्यापित की गई है।
भारत सरकार द्वारा अपने अधीनस्थ कार्यालय व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं यथा-विश्व बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक आदि द्वारा पोषित योजनाओं में सामग्री, निर्माण, सेवाओं एवं कन्सल्टेन्ट आदि के प्रोक्योरमेंट के सम्बन्ध में समय-समय पर ‘सामान्य वित्तीय नियम-2017’ में संशोधन किये गये हैं। इसी क्रम में राज्य की भौगोलिक परिस्थिति तथा व्यवहारिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति नियमावली, 2017 में संशोधन की आवश्यकता पाये जाने के दृष्टिगत अधिप्राप्ति के ढांचे एवं पारदर्शिता को मजबूत किये जाने के उददेश्य से राज्य सरकार द्वारा उत्तराखण्ड अधिप्राप्ति (प्रोक्योरमैन्ट) नियमावली, 2024 को प्रख्यापित किये जाने का निर्णय लिया गया है।
कैबिनेट के द्वारा उत्तराखंड अधिप्राप्ति (प्रोक्योरमेंट) नियमावली में संशोधन का अनुमोदन करते हुए राज्य के स्थानीय निवासियों के सशक्तिकरण और उनके रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के लिए विभिन्न विभागों में रू. 10 करोड़ तक की लागत के कार्य स्थानीय व्यक्तियों या स्थानीय पंजीकृत फर्मों के माध्यम से ही कराए जाने का निर्णय लिया गया है। अभी तक स्थानीय लोगों के लिए यह सीमा रू. 05 करोड़ तक थी। इसके साथ ही राज्य के विभागों में विभिन्न श्रेणियों में पंजीकृत ठेकेदारों के लिए कार्य की सीमा को भी बढाने का निर्णय लिया गया है।
कैबिनेट के द्वारा स्वयं सहायता समूहों एवं एमएसएमई को प्रोत्साहित करने तथा स्थानीय उत्पादों को बढावा देने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूहों एवं एवं एमएसएमई को क्रय वरीयता प्रदान करने के लिए भी नीति का अनुमोदन प्रदान किया गया है। स्वयं सहायता समूहों के लिए पहले इस तरह की कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी। अभी तक स्थानीय स्तर पर स्वयं सहायता समूहों को रू. 05 लाख तक की लागत के कार्य दिए जा सकते थे। क्रय वरीयता की नीति लागू होने से राज्य के सरकारी विभागों की निविदा प्रक्रिया में स्वयं सहायता समूहों एवं एमएसएमई को न्यूनतम दर की निविदा से 10 प्रतिशत की सीमा तक क्रय वरीयता मिलेगी। निविदा प्रक्रिया में अर्नेस्ट मनी को भौतिक रूप में जमा किये जाने की व्यवस्था को समाप्त कर अब निविदाओं के साथ ऑनलाईन प्रक्रिया से ई.बी.जी. (इलेक्ट्रॉनिक बैंक गारंटी) लिए जाने का निर्णय लिया गया है। कैबिनेट के द्वारा प्रोक्योरमेंटी में संबंध में शिकायतों के निस्तारण के लिए आईएफएमएस पोर्टल पर ग्रीवांस रिड्रेसल यूटिलिटी को भी संचाालित किए जाने का अनुमोदन प्रदान किया गया है।
2- उत्तराखण्ड मेगा इण्डस्ट्रियल एवं इन्वेस्टमेंट नीति-2025 (मेगा पॉलिसी-2025) के प्राख्यापन के सम्बन्ध में कैबिनेट द्वारा लिया गया निर्णय।
राज्य में वृहत उद्यमों हेतु वर्तमान में लागू मेगा इण्डस्ट्रियल एवं इन्वेस्टमेंट नीति-2021 के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के उपादान हेतु बार-बार आवेदन की जटिल प्रक्रिया एवं उक्त नीति दिनांक 30 जून, 2025 को समाप्त होने तथा केन्द्र सरकार द्वारा राज्य के लिये लागू औद्योगिक विकास योजना -2017 के वर्ष 2022 में समाप्त होने के कारण वृहत उद्यमों हेतु पूंजीगत उपादान की अन-उपलब्धता के दृष्टिगत पूर्व नीति में प्रावधानित सभी प्रकार के उपादानों को सम्मिलित कर पूंजीगत उपादान का प्रावधान करते हुये उत्तराखण्ड मेगा इण्डस्ट्रियल एवं इन्वेस्टमेंट नीति-2025 (मेगा पॉलिसी-2025) प्रस्तावित की गयी है।
इस योजना का उद्देश्य उत्तराखण्ड को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूंजी निवेश हेतु प्रतिस्पर्धी गंतव्य के रूप में स्थापित करने तथा वृहत श्रेणी के विनिर्माणक उद्यम में पूंजी निवेश के लिये अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करते हुये राज्य का आर्थिक विकास एवं अतिरिक्त रोजगार अवसरों का सृजन करना है।
यह नीति जारी होने की तिथि से प्रभावी होकर आगामी 05 वर्ष तक प्रवृत्त रहेगी। उक्त अवधि में सिंगल विण्डो पोर्टल पर कैफ ( सी.ए.एफ ) आवेदन करते हुये, नीति के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने का आशय व्यक्त करने वाली इकाईयों को, वृहत उद्यम निवेश श्रेणी के अनुरूप अनुमन्यतानुसार वित्तीय प्रोत्साहन का लाभ देय होगा।
इस नीति के अंतर्गत स्थायी पूंजी निवेश (भूमि को छोड़कर) के आधार पर वृहत उद्यमों को 04 श्रेणी – लार्ज (रू. 50 करोड़ से अधिक, रू. 200 करोड़ तक), अल्ट्रा लार्ज (रू. 200 करोड़ से अधिक, रू. 500 करोड़ तक), मेगा (रू. 500 करोड़ से अधिक, रू. 1000 करोड़ तक) तथा अल्ट्रा मेगा (रू. 1000 करोड़ से अधिक) के अंतर्गत वर्गीकृत करते हुये इनके लिये क्रमशः 50, 150, 300 तथा 500 न्यूनतम स्थायी रोजगार की सीमा निर्धारित की गयी है। उक्त निवेश के लिये कैफ आवेदन की तिथि से 03 से 07 वर्ष की समय-सीमा निर्धारित की गयी है।
इस नीति के अंतर्गत स्थापित होने वाले उद्यमों द्वारा भूमि क्रय विलेख/ लीज डीड के निष्पादन पर देय स्टॉम्प ड्यूटी में 50 प्रतिशत (अधिकतम रू. 50 लाख) की प्रतिपूर्ति का प्रावधान किया गया है।
इस नीति के अंतर्गत लार्ज, अल्ट्रा लार्ज, मेगा, अल्ट्रा मेगा निवेश श्रेणी के वृहत उद्यमों को स्थायी पूंजी निवेश के सापेक्ष क्रमशः 10 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 15 प्रतिशत तथा 20 प्रतिशत के पूंजीगत उपादान का प्रावधान किया गया है, जो क्रमशः 08, 10, 12 तथा 15 वर्षों में उद्यमों को वाणिज्यिक उत्पादन में आने के उपरान्त वार्षिक किश्तों में देय होगा।
पर्वतीय क्षेत्रों में वृहत उद्यमों की स्थापना के प्रोत्साहन हेतु इस नीति के अंतर्गत श्रेणी-ए व बी के जनपदों में क्रमशः 02 एवं 01 प्रतिशत का अतिरिक्त पूंजीगत उपादान प्रावधानित किया गया है।
03- उत्तराखण्ड विष (कब्जा और विक्रय) नियमावली, 2023 की अनुसूची में संशोधन किये जाने का कैबिनेट द्वारा लिया गया निर्णय।
मा० सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका संख्या-129/2006, लक्ष्मी बनाम भारत संघ में पारित निर्णय दिनांक 18.07.2013 के अनुपालन में भारत सरकार द्वारा निर्गत Model Poisons Possession and sales Rule, 2013 को अधिग्रहित कर प्रत्येक राज्य द्वारा Poisons Rules निर्गत किये जाने के दृष्टिगत उत्तराखण्ड राज्य में भी उत्तराखण्ड विष (कब्जा और विक्रय) नियमावली, 2023 का प्रख्यापन किया गया है।
वर्तमान में उत्तराखण्ड सरकार द्वारा प्रख्यापित उत्तराखण्ड विष (कब्जा एवं विक्रय) नियमावली, 2023 की सूची में मिथाईल एल्कोहॉल को विष की श्रेणी में अधिसूचित नहीं किया गया है, जिस कारण मिथाईल अल्कोहॉल का प्रयोग करने वाली इकाईयों का निरीक्षण करने में कठिनाई होती है तथा इकाईयों का नवीनीकरण आसानी से हो जाता है। उल्लेखनीय है कि मिथाईल एल्कोहॉल एक रंगहीन, ज्वलनशील एवं जहरीला तरल रसायन है, जिसका 30 मिली० सेवन करने से व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है तथा इसके सेवन से अंधापन होना आम बात है।
अतः विष अधिनियम, 1919 (अधिनियम संख्या-12 वर्ष 1919) की धारा-2 एवं 8 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुये उत्तराखण्ड विष (कब्जा एवं विक्रय) नियमावली, 2023 की अनुसूची में उल्लिखित विष की सूची में मिथाईल एल्कोहॉल को सम्मिलित किया जाने का निर्णय लिया गया है।
04- राजकीय विभाग अधीनस्थ लेखा संवर्ग (अराजपत्रित) सेवा नियमावली, 2019 के राजकीय विभाग अधीनस्थ लेखा संवर्ग (अराजपत्रित सेवा नियमावली, 2019 के लागू होने से पूर्व कोषागार विभाग में कार्यरत सहायक लेखाकारों / लेखाकारों के सम्बन्ध में विद्यमान वेतन विसंगति का निराकरण किये जाने के संबंध में कैबिनेट द्वारा लिया गया निर्णय।
राजकीय विभाग अधीनस्थ लेखा संवर्ग (अराजपत्रित) सेवा नियमावली, 2019 के लागू होने की तिथि से पूर्व कोषागार विभाग (निदेशालय कोषागार, पेंशन एवं हकदारी के अधीन आने वाले समस्त कार्यालय यथा-कैम्प कार्यालय, कोषागार, पेंशन एवं हकदारी तथा राज्य के कोषागार / उपकोषागार) में कार्यरत सहायक लेखाकार / लेखाकार इस नियमावली के लागू होने की तिथि से ठीक पूर्व उन्हें अनुमन्य वेतनमान / वेतन लेवल पाते रहेंगे तथा ऐसे सहायक लेखाकार, जो कि मा० न्यायालय के आदेशों के अनुक्रम में तत्समय वेतन मैट्रिक्स रू0 44900-142400, लेवल 7 (ग्रेड वेतन रू0 4600) प्राप्त कर रहे थे, उन्हें लेखाकार के पद पर पदोन्नत होने पर अगला वेतन मैट्रिक्स रू0 47600-151100, लेवल 8 (ग्रेड वेतन रू0 4800) अनुमन्य होगा, के सम्बन्ध में कार्यालय ज्ञाप निर्गत किये जाने का कैबिनेट द्वारा निर्णय लिया गया है।
05- राज्य बांध सुरक्षा संगठन, उत्तराखण्ड द्वारा तैयार वार्षिक प्रतिवेदन 2023-24 को मा० विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत किये जाने के सम्बन्ध में लिया गया निर्णय।
बांध की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रख-रखाव प्रदान करने हेतु भारत सरकार द्वारा अधिसूचित बांध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के प्राविधानों के आलोक में उत्तराखण्ड में गठित राज्य बांध सुरक्षा संगठन के द्वारा उनके अधिकार क्षेत्र में निर्मित 21 बाधों की सुरक्षा स्थिति के सम्बन्ध में बांध सुरक्षा संगठन, उत्तराखण्ड द्वारा तैयार वार्षिक प्रतिवेदन 2023-24 को मा० विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत किये जाने हेतु मा० मंत्रिमण्डल द्वारा अनुमोदन प्रदान किया गया है।
06- राज्य में उत्तराखण्ड निबन्धन लिपिक वर्गीय कर्मचारी सेवा नियमावली, 2025 प्रख्यापित किये जाने के सम्बन्ध में निर्णय।
वर्तमान में राज्य में स्टाम्प एयं निबन्धन विभागान्तर्गत लिपिक वर्ग संवर्ग हेतु पैतृक राज्य उत्तरप्रदेश से ग्राह्य की गयी लिपिक वर्ग सेवा नियमावली, 1978 ही लागू है. जिसमें उत्तराखण्ड राज्य में तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार मात्र भर्ती प्रक्रिया निर्धारित करते हुए वर्ष 2008 में कतिपय संशोधन किये गये थे, जो कि वर्तमान परिस्थितियों में प्रासंगिक नहीं हैं। साथ ही उक्त नियमावली में रिकार्ड कीपर के पदों पर भर्ती हेतु पदोन्नति के संबंध में स्थिति स्पष्ट नहीं की गयी है।
उक्त को दृष्टिगत रखते हुये स्वीकृत विभागीय ढाँचे के अनुरूप लिपिक वर्ग संवर्ग (मुख्य निबन्धन लिपिक, निबन्धन लिपिक एवं रिकार्ड कीपर) के पदों हेतु भर्ती / पदोन्नति प्रकिया निर्धारित किये जाने के परिप्रेक्ष्य में उत्तराखण्ड निबन्धन लिपिक वर्गीय कर्मचारी सेवा नियमावली-2025 प्रख्यापित किये जाने का कैबिनेट द्वारा लिया गया निर्णय।
उक्त नियमावली के लागू होने से लिपिकीय पदों पर भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्पष्टता सुनिश्चित होगी। उक्त नियामवली कर्मचारियों को पदोन्नति, वेतन वृद्धि और स्पष्ट कार्य नीति प्रदान करेगी।
07- उत्तराखण्ड सेवा क्षेत्र नीति 2024 में किये गये कतिपय संशोधनों को कैबिनेट द्वारा दी गई मंजूरी।
नियोजन विभाग, उत्तराखण्ड शासन के शासनादेश, दिनाक 15 मार्च, 2024 द्वारा उत्तराखण्ड सेवा क्षेत्र नीति, 2024 प्रख्यापित की गयी है जिसके अन्तर्गत चिन्हित सेवा क्षेत्र यथा स्वास्थ्य देखभाल, वेलनेस एवं पारम्परिक चिकित्सा, शिक्षा, फिल्म और मीडिया, खेल, आई.टी.ई.एस., डाटा सेंटर, कौशल विकास में निवेश को प्रोत्साहित कर उनका विकास करना है। इस नीति की क्रियान्वयन एजेंसी उत्तराखण्ड निवेश एवं अवसंरचना विकास बोर्ड (यू०आई०आई०डी०बी0) है।
उत्तराखण्ड राज्य की विशेष भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुये राज्य के पर्वतीय एवं कम विकसित क्षेत्रों में प्राथमिकता के आधार पर अधिक गुणवत्तापूर्ण एवं सन्तुलित निवेश एवं विकास को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य उत्तराखण्ड सेवा क्षेत्र नीति-2024 में कतिपय संशोधन नियोजन विभाग द्वारा प्रस्तावित किया गया था जिस पर मा० मंत्रिमण्डल द्वारा अनुमोदन प्रदान किया गया।
उक्त संशोधन के द्वारा जहां राज्य के कतिपय विकसित क्षेत्रों यथा ऋषिकेश एवं देहरादून नगर निगम तथा मसूरी एवं मुनि की रेती नगरपालिका क्षेत्र, नैनीताल तहसील क्षेत्र आदि को इस नीति के दायरे से बाहर किया गया है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण निवेश को आकर्षित किये जाने हेतु कतिपय मानदण्ड यथा- महाविद्यालय / विश्वविद्यालय की उच्च रैकिंग का होना, छात्रों की न्यून्तम पंजीकरण संख्या का निर्धारण, न्यूनतम पाठ्यक्रम अवधि, एक जिले में क्षेत्र-विशेष की केवल एक प्रस्तावित परियोजना को लाभ दिया जाना आदि को सम्मिलित किया गया है। उक्त संशोधन के फलस्वरूप राज्य के कम विकसित क्षेत्रों में प्राथमिकता के आधार पर अधिक गुणवत्तापूर्ण एवं सन्तुलित निवेश एवं विकास प्रोत्साहित होगा।
08- उत्तराखण्ड चाय विकास बोर्ड के ढाँचें में 11 अतिरिक्त पद सृजित किये जाने के सम्बन्ध में लिया गया निर्णय।
राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में चाय विकास की अपार संभावनाओं को देखते हुए चाय विकास उत्पादन के समुचित विकास, वित्तीय व्यवस्था, निवेश एवं सयंत्र आदि की उपलब्धता सुनिश्चित किये जाने हेतु वर्ष 2004 में उत्तराखण्ड चाय विकास बोर्ड का गठन करते हुए बोर्ड का मुख्यालय जनपद अल्मोड़ा में स्थापित किया गया था।
वर्तमान में बोर्ड द्वारा पुराने चाय बागानों का जीर्णाेद्वार, नये चाय बागानों की स्थापना, नये क्षेत्रों में चाय की खेती की सम्भावनाओं का सर्वेक्षण, निष्प्रोज्य पड़ी भूमि में चाय प्लान्टेशन कर स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने तथा कृषकों की आय में वृद्धि करने एवं काश्तकारों से लीज पर ली गई भूमि में चाय बागान विकसित किये जाने के दृष्टिगत विभागीय कार्यहित में 11 अतिरिक्त पद (04 नियमित एवं 07 आउटसोर्स) सृजित किये जाने के प्रस्ताव को कैबिनेट द्वारा मंजूरी प्रदान की गई है।
09- उत्तराखंड योग नीति 2025 को मिली कैबिनेट की मंजूरी।
उत्तराखंड को भारत की अध्यात्मिक और योग परंपरा की भूमि माना जाता है, जो सदियों से ऋषियों, मुनियों और साधकों की साधना स्थली रही है। आज भी ऋषिकेश, कौसानी, चम्पावत जैसे स्थल कई दशकों से योग साधना के प्रमुख केन्द्र है। इस ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को सहेजते हुए उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2025 में एक महत्वाकांक्षी पहल के तहत उत्तराखंड योग नीति 2025 की घोषणा की है। यह देश की प्रथम योग नीति है जो राज्य को योग और वेलनेस की वैशिक राजधानी के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से तैयार की गई है। जिसे राज्य कैबिनेट द्वारा मंजूरी प्रदान की गई है।
इस नीति का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि योग को केवल एक आध्यात्मिक या व्यक्तिगत साधना तक सीमित न रखा जाए, बल्कि उसे एक सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और पर्यटन-आधारित मॉडल के रूप में विकसित किया जाए। नीति का विज़न अत्यंत स्पष्ट है – उत्तराखंड को योग और वेलनेस का वैश्विक केंद्र बनाना।
इस योग नीति के तहत सरकार का उद्देश्य कई स्तरों पर काम करना है। सबसे पहले तो राज्य में योग पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि उत्तराखंड को अंतरराष्ट्रीय योग और आध्यात्मिकता के केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सके। इसके साथ ही गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए योग संस्थानों के लिए नियम और दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे। जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से योग को जन-जन तक पहुँचाया जाएगा और इसे स्कूलों तथा कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सहयोग कर के योग के क्षेत्र में क्षमता निर्माण किया जाएगा। साथ ही, विश्वस्तरीय योग केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जाएगा।
नीति के तहत कुछ विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। जैसे कि वर्ष 2030 तक उत्तराखंड में कम से कम पांच नए योग हब स्थापित किए जाएंगे। मार्च 2026 तक राज्य के सभी आयुष हेल्थ और वेलनेस सेंटर्स में योग सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। समुदाय-आधारित माइंडफुलनेस कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे, जो अलग-अलग आयु, लिंग और वर्ग की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर तैयार किए जाएंगे।
इसके अतिरिक्त, योग संस्थानों का शत प्रतिशत पंजीकरण सुनिश्चित किया जाएगा, एक विशेष ऑनलाइन योग प्लेटफार्म शुरू किया जाएगा, योग पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रचार अभियान और अंतरराष्ट्रीय योग सम्मेलनों का आयोजन किया जाएगा तथा मार्च 2028 तक 15 से 20 राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ भागीदारी विकसित करने का लक्ष्य है।
नवीन स्थापित होने वाले तथा एक्सपेंशन करने वाले केंद्रों को पहाड़ी क्षेत्रों में परियोजना लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम ₹20 लाख तक तथा मैदानी क्षेत्रों में 25 प्रतिशत या अधिकतम ₹10 लाख तक का अनुदान दिया जाएगा। कुल वार्षिक अनुदान की सीमा ₹5 करोड़ तक होगी।
जागेश्वर, मुक्तेश्वर, व्यास घाटी, टिहरी झील और कोलीढेक झील को योग हब के रूप में विकसित किए जाने का लक्ष्य है अतः इन क्षेत्रों में विकसित होने वाले योग केंद्रों को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी।
योग, ध्यान और प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में शोध को प्रोत्साहित करने के लिए ₹10 लाख तक प्रति परियोजना का अनुदान दिया जाएगा। यह सुविधा विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, स्वास्थ्य संगठनों, आयुष संस्थाओं और एनजीओ के लिए होगी। कुल मिलाकर नीति अवधि में ₹1 करोड़ तक की राशि अनुसंधान हेतु निर्धारित की गई है।
राज्य में पहले से चल रहे होमस्टे, रिसॉर्ट, होटल, स्कूल, कॉलेज आदि में यदि योग केंद्र स्थापित किए जाते है तो नियोजित होने वाले योग अनुदेशक हेतु प्रत्ति सत्र ₹250 तक की प्रतिपूर्ति उक्त संस्था को दी जाएगी, प्रति केंद्र में एक अनुदेशक हेतु प्रति माह 20 सत्रों की प्रतिपूर्ति की जाएगी।
उत्तराखंड सरकार द्वारा योग और प्राकृतिक चिकित्सा निदेशालय की स्थापना की जायेगी, जो इस पूरी नीति के सचालन, नियमन, अनुदान वितरण और विभिन्न गतिविधियों की निगरानी करेगा। निदेशालय में एक निदेशक, संयुक्त निदेशक, उपनिदेशक, योग विशेषज्ञ, रजिस्ट्रार और अन्य आवश्यक स्टाफ शामिल होंगे। निदेशालय का कार्य योग केंद्रों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना, योग संस्थानों का पंजीकरण और योग प्रमाणन बोर्ड के अंतर्गत मान्यता प्राप्त करवाना, योग केंद्रों की रेटिंग प्रणाली बनाना और एम.ओ.यू. के माध्यम से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोग स्थापित करना होगा।
नीति की समीक्षा और निगरानी के लिए एक उच्च स्तरीय राज्य समिति का गठन किया जाएगा। नीति के सफल कार्यान्वयन के लिए सरकार द्वारा आगमी 5 वर्षों में लगभग ₹35 करोड़ का व्यय होगा, इसमें से योग केंद्रों के लिए ₹25 करोड़, अनुसंधान के लिए ₹1 करोड़, शिक्षक प्रमाणन हेतु ₹1.81 करोड़ और मौजूदा संस्थानों में योग सत्रों के लिए संचालन में सहयोग हेतु ₹7.5 करोड़ के व्यय होने का आकलन है।
इस नीति से राज्य को कई प्रकार के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। एक ओर यह राज्य में लगभग 13,000 से अधिक रोजगार सृजित करेगी, 2500 योग शिक्षकों के लिए योगा सर्टिफिकेशन बोर्ड से प्रमाणित होंगे और 10,000 से अधिक योग अनुदेशकों को होमस्टे, होटल आदि में रोजगार मिलने की संभावना है। योग पर्यटन को बढ़ावा मिलने से राज्य की अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम मिलेगा, जन सामान्य में स्वास्थ्य संवर्धन के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, योग शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन आएगा और राज्य को योग परिक्षेत्र में वैश्विक पहचान मिलेगी।
10- राजकीय मेडिकल कॉलेज देहरादून व हल्द्वानी के समीप रोगियों के तीमारदारों के लिये विश्रामगृहों की स्थापना का निर्णय।
राजकीय मेडिकल कॉलेजों में प्रदान की जानी वाली द्वितीयक एवम् तृतीयक श्रेणी की चिकित्सा सेवा/सुविधा में आई०पी०डी० रोगियों के साथ तीमारदार भी आवश्यक रूप से प्रवास करते हैं, की संख्या भी लगभग रोगियों / मरीजों के बराबर ही रहती है। उक्त तीमारदारों के विश्राम हेतु चिकित्सालय के समीप ही विश्राम गृह की व्यवस्था न होने के कारण रोगियों के परिजन चिकित्सालय की गैलरी, वार्ड के बाहर अथवा चिकित्सालय परिसर के आस पास ही ठहरते / रात्रि विश्राम करते हैं, जिससे चिकित्सालयों में कार्यरत् स्टाफ को मरीजों के चिकित्सकीय परीक्षण एवं देखभाल में असुविधा होती है साथ ही रोगियों के परिजन भी परेशान होते हैं। अतः उक्त चिकित्सालयों के समीप रोगी के तीमारदारों के स्वास्थ्य एवम् सुरक्षा की दृष्टि से मूलभूत सुविधाओं वाले साफ-सुथरे, सुरक्षित विश्राम गृह होना अत्यन्त आवश्यक है। राज्य के सीमित संसाधनों के दृष्टिगत राजकीय मेडिकल कॉलेज, देहरादून एवं हल्द्वानी के सम्बद्ध चिकित्सालयों में सुदूरवर्ती पर्वतीय / मैदानी क्षेत्रों से आने वाले रोगियों के तीमरदारों की सुविधा हेतु चिकित्सालयों के समीप विश्राम गृह की स्थापना एवं संचालन इच्छुक गैर लाभकारी संस्था/सी०एस०आर० मद / बाह्य सहायतित योजनाओं के माध्यम से किये जाने का कैबिनेट द्वारा निर्णय लिया गया।
11- प्रदेश में संचालित अटल आयुष्मान योजना और राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना के तहत अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में लंबित देनदारियों की प्रतिपूर्ति हेतु 75 करोड़ रुपए स्वास्थ विभाग को लोन के रूप में किया आवंटन।