इन 41 बच्चों की भी है आज दिवाली …..
समाज के लिए साफ नियत और ईमानदारी से कोशिश की जाये, तो सफलता के पंख लग ही जाते हैं। जिनका कोई नहीं है उनका देहरादून के बद्रीपुर में आश्रम अपना घर है। उत्तराखंड सरकार में वरिष्ठ अधिकारी व पूर्व विधायक की बेटी रामिन्द्री मंद्रवाल, और उनकी बहन देवेन्द्री मंद्रवाल की सालों से प्रबल इच्छाशक्ति, ईमानदार पहल, लग्नशीलता, कर्तव्यनिष्ठ,ज्ञान और समर्पण का नतीजा है कि आज 41 बेसहारा बच्चे अपनी मंजिल में पहुँच गए हैं।
बेसहारा का अर्थ जिसके मां बाप ना हो, जिसका कोई ना हो और समाज में वह बच्चे अलग-थलग पड़ गए हो, उनकी परवरिश पढ़ाई- लिखाई अपना घर आश्रम से होती है। रामिन्द्री जी उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की पहले 2005 बैच की एलाइड पीसीएस अधिकारी हैं। अगले साल ही 2006 से उन्होंने अपने घर के पास बद्रीपुर देहरादून में बेसहारा बच्चों को सहारा देने के लिए अपना घर आश्रम का संचालन शुरू कर लिया था। उस साल पिता श्रीनगर गढ़वाल से विधायक थे। 2006 से जल रही यह प्रकाश की लौ आज तक समाज के बेसहारा, गरीब, दमित की रौशनी बनी हुई है। 6 साल से 18 साल तक की बेसहारा लड़के – लड़कियां यहां रहती है लेकिन आश्रम का विशेष फोकस लड़कियों पर ज्यादा है। उत्तराखंड के जिलों के प्रशासन के रिकमंड के आधार पर ही यहां बच्चे आते हैं और फिर यहीं के हो जाते हैं उन्हें यहां बहुत प्यार मिलता है।
अपना घर ने 17 बच्चियों को पढ़ाकर उनकी शादियां करा दी हैं किसी की शादी देहरादून हुई है किसी के सहारनपुर तो किसी की पहाड़ पर । वह बेटियां खुश हैं। उनके बच्चे हो गए हैं वह बच्चे रामन्द्री जी को दादी कहते हैं। समाज में जिसका कोई नहीं है उनके लिए यह दो बहनें हैं। दोनों अविवाहित हैं। समाज में बिछड़े हुए लोग ही उनके अपने हैं। वह हर दिन कोशिश करती हैं कि थोड़ा इनके साथ टाइम निकालें, इनको जाने, इनके साथ बातचीत करें। बहन देवेंद्री इस आश्रम की अध्यक्ष हैं। उनको पेंटिंग और लेखन कार्य पसंद है। उनका ज्यादातर समय आश्रम में ही गुजरता है। आश्रम अपना घर से बच्चे स्कूल चले जाते हैं दिन के खाना का टिफन, बस , टैम्पो का किराया सब दिया जाता है। शाम को या दोपहर में जब वह स्कूल से लौटती हैं उसके बाद नाश्ता तैयार रहता है। बच्चों को घर जैसा वातावरण यहां मिलता है। फिर खेल कूद शुरू हो जाते हैं। फिर पढ़ाई। उसके बाद रात के डिनर के बाद सोना होता है। महिला वार्डन की पूरे रात भर चौकसी रहती है। साफ सफाई का ख्याल रखा जाता है।
आश्रम अपना घर में 11 कर्मचारी इनके देखभाल के लिए रखे हुए हैं। कुक है तो वार्डन भी हैं। 9 कमरे और एक हॉल सहित पूरा आश्रम किराए में चल रहा है। इसका प्रतिमाह ₹20 हज़ार रुपये किराया है। पहले पहले तो बहुत कठिनाई आई, लेकिन अब लोगों के मदद के लिए हाथ आगे आए हैं। उत्तराखंड शासन में सचिव रहे आईटीएस श्री दीपक गैरोला ने अपना घर से एक लड़की को उच्च शिक्षा पढ़ाने की इच्छा जाहिर की थीं, वह लड़की सिद्धार्थ लॉ कॉलेज देहरादून से लॉ कर रही हैं। उसकी फीस साढ़े तीन लाख रुपये है। इसी तरह से कुछ लड़कियां एमए कर रही हैं कुछ बीए कर रही हैं कुछ बीकॉम कर रही हैं कुछ और प्रोफेशनल कोर्सेस। सब की फीस भरी जा रही है। इसी तरह कुछ लोग आश्रम को आटा देते हैं, चावल देते हैं, दाले देते हैं और कुछ नगद राशि भी देते हैं। आश्रम अपना घर बद्रीपुर 2009 में रजिस्टर्ड हो गया था, अपना बैंक अकाउंट भी है कुछ लोग मदद सीधे खाते में कर देते हैं। यहां मंद्रवाल बहनों ने घर जैसा माहौल बनाया हुआ है। साफ-सुथरे बेड साफ टॉयलेट और अनुशासन से अपना घर की छवि 16 वर्ष बाद और उजली हुई है। हर साल यहां 6 वर्ष से उससे अधिक उम्र की बेसहारा बच्चियां आ जाती है और जब वह पास आउट हो जाती हैं तब यहां और बच्चियां प्रशासन भेजता है। यह चक्र बना हुआ है।