उत्तराखंड पहुंचे उपराष्ट्रपति एम वैंकया नायडू, उत्सर्ग का किया विमोचन
देहरादून आज शनिवार को देश के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू एक दिवसीय उत्तराखंड दौरे पर पहुँचे। हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय परिसर में पहुँचकर उन्होंने दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान (दएशांसुसं) का शुभारंभ किया। यह संस्थान दक्षिण एशियाई देशों के बीच तमाम राजनीतिक चुनौतियों के मद्देनजर क्षेत्रीय स्थिरता और आपसी सकारात्मक व्यवहार की स्थापना को प्रेरित करता है। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वाेच्च बलिदान देने वाले वीर शहीदों की याद में बनी शौर्य दीवार पर पुष्पांजलि अर्पित की। साथ ही देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में स्थापित एशिया के प्रथम बाल्टिक सेंटर का अवलोकन किया। उन्होंने बाल्टिक देशों में सेंटर द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों को सराहा। साथ में उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल ने कुटीर उद्योग, हस्तकरघा का अवलोकन किया, एवं इस अवसर पर उपराष्ट्रपति एवं राज्यपाल ने देसंविवि के नवीनतम वेबसाइट, प्रज्ञायोग प्रोटोकॉल एवं उत्सर्ग पुस्तक का भी विमोचन किया। माननीय उपराष्ट्रपति ने प्रज्ञेश्वर महादेव का पूजन कर विश्व शांति, राष्ट्र की सुख एवं उन्नति की कामना की। उन्होंने प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर में रुद्राक्ष के पौधे का रोपण कर पर्यावरण संतुलन के लिए संदेश दिया।
इस दौरान उपराष्ट्रपति श्री नायडू ने कहा की मुझे प्रसन्नता है कि देवभूमि उत्तराखंड की तीर्थ भूमि हरिद्वार के इस अध्यात्मिक संस्थान में अपने विचारों को साझा करने का सौभाग्य मिला है। इस अवसर पर उन्होंने मां, मातृभाषा और मातृभूमि को सदैव आत्मा से जोडे रहने के लिए उपस्थित लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि देश के उच्च पदों पर आसीन लोगों ने अपनी मातृभाषा में अध्ययन कर उंचाइयों को प्राप्त किया। उन्होंने मातृभाषा को आगे बढ़ाने पर विशेष जोर दिया और कहा कि मातृ भाषा को आगे बढाने के लिये हर सम्भव प्रयास किये जायें।
कार्यक्रम में उपस्थित माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (से. नि.) श्री गुरमीत सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि देव संस्कृति विश्विद्यालय मुझे एक मंदिर जैसा लगता है।यहाँ भारतीय संस्कृति पर जिस वैज्ञानिक तरीके से शोध हो रहा है, उसका नेतृत्व देवसंस्कृति विवि करेगा, ऐसा मुझे विश्वास है। दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान शांति प्रेम और खुशहाली के लिए कार्य करेगा।
अपने सम्बोेधन में विश्विद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या जी ने स्वागत उद्बोधन एवं दक्षिण एशियाई शांति एवं सुलह संस्थान की परिकल्पना की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय पंरपरा शांति, समरता और सौहार्द्र की रही है। इसी कार्य को इस संस्थान के माध्यम से और आगे बढायेंगे। इसी क्रम में वेदों और उपनिषदों के सार को भी विश्व भर में फैलायेंगे।